Book Details |
Book Author |
Dr. Shweta Jayswal |
Language |
Hindi |
Book Editions |
First |
Binding Type |
Hardcover |
Pages |
256 |
Publishing Year |
2025 |
संजीव जनपक्षधर चेतना के कथाकार हैं, जिन्होंने अपने उपन्यासों में ग्रामीण, पिछड़े और शोषित वर्ग के जीवन-यथार्थ को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। वे किसानों, मजदूरों और उपेक्षित समाज की पीड़ा को सजीव रूप में रचते हैं। इस दृष्टि से वे प्रेमचंद और रेणु की परंपरा को समकालीन संदर्भों में आगे बढ़ाने वाले कथाकार हैं। संजीव के उपन्यास पारंपरिक कथाओं की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि वर्तमान समय के अनुरूप उनका सजीव पुनर्मूल्यांकन हैं। संजीव समकालीन हिन्दी कथा साहित्य को नया स्वर, तेवर और रूप देने वाले महत्वपूर्ण कथाकार हैं। वे मानवीय सरोकारों के रचनाकार हैं जिनकी लेखनी इंसान की बेहतरी के लिए समर्पित है। उनके साहित्य में हाशिए पर पड़े मजदूर, दलित, महिलाएँ, आदिवासी और निम्नवर्गीय समाज का यथार्थ चित्रण मिलता है। उनका कथा-साहित्य आम आदमी के संघर्षों को उद्घाटित करता है।
संजीव केवल यथार्थवादी नहीं, बल्कि यथार्थ के अन्वेषक हैंकृकागज पर लिखी नहीं, आँखों से देखी हुई सच्चाइयों को प्रधानता देते हैं। वे स्वयं प्रेमचंद को अपनी प्रेरणा मानते हैं, और उनकी रचना-दृष्टि में भी समाज के शोषित-वंचित वर्ग की पीड़ा और विद्रोह का स्वर प्रमुख है। उनकी कहानियों में विषयों का व्यापक फैलाव और चरित्रों की विविधता अद्वितीय है। निःसंदेह संजीव आज के दौर में प्रेमचंद की परंपरा के सशक्त और विश्वसनीय कथाकार हैं।
श्वेता जायसवाल ने हाशिए का समाज और हिंदी में उपन्यास लेखन के विकास पर चर्चा करते हुए संजीव के उपन्यासों में हाशिए के समाज की स्थिति एवं संभावनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इस क्रम में श्वेता ने कथाकार संजीव के उपन्यास ‘अहेर’, ‘सर्कस’, ‘सावधान! नीचे आग है’, ‘धार’, ‘पाँव तले की दूब’, ‘जंगल जहाँ शुरू होता है’, ‘सूत्रधार’, ‘आकाश -चंपा’, ‘रह गई दिशाएँ इसी पार’, ‘फाँस’, ‘प्रत्यंचा’, और ‘मुझे पहचानो’ में चित्रित जीवन-यथार्थ एवं हाशिए के समाज का विश्लेषण बहुत ही बारीकी से किया है । मेरा विश्वास है कि श्वेता जायसवाल का यह शोध कार्य हिंदी के अधीत्सु पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
- डॉ० प्रज्ञा गुप्ता
सहायक प्राध्यापिका,
हिंदी विभाग, राँची वीमेंस कॉलेज, राँची