Book Details | |
Book Author | Translated By - Acharya Mithila Prasad Tripathi Ed. By - Dr. Rampal Shukla |
Language | Hindi, Sanskrit |
Book Editions | First |
Binding Type | Hardcover |
Pages | 208 |
Publishing Year | 2025 |
सम्पादकीय
ऋग्वेद में नामोपासना का स्रोत मिलता है-
तमु स्तोतारः पूयं यथा विदऋतस्य गर्ने जनुषा पिपर्तन ।
आस्य जानन्तो नाम विदु विवक्तनमहस्ते विष्णो सुमर्ति यजामहे ।।
(ऋग्वेद ० १/१५६/३)
इस मन्त्र में आचार्य सायण ने समन्तात संकीर्त्यते अर्थ किया है।
आदि शंकराचार्य ने विष्णु सहस्रनाम के भाष्य में इस मन्त्र को नामोपासनापरक माना है।
"मर्ता अमर्त्यस्य ते भूरि नाम मनामहे" (ऋग्वेद ०८/११/४१)
इस मन्त्र में आचार्य सायण ने मनामहे का उच्चार्ययामः अर्थ किया है। वेद तथा ईश्वर के लिए अमर्तस्य पद देकर मरण धर्मा शरीर में अमर के नाम की उपासना करके अमरता प्राप्त की जाए ऐसा प्राप्त होता है।
वेद के अनेक उपनिषदों में नाम मन्त्र की महत्ता और अनेक नाम मन्त्र की उपासना के सन्दर्भ प्राप्त होते हैं। अथर्ववेद में "नाम नाम्ना जोह्वीति (अथर्व. १०/७/३१) कहकर देवताओं के जितने भी नाम आए हैं वे सब एक ही ईश्वर के हैं। अतः नाम की अद्भुत शक्ति को अन्य महापुरुषों ने भी बुद्धि गम्य कराने का प्रयत्न किया है। जिसका नाम लेकर पुकारा जाए चही व्यक्ति उठता है ऐसा इसलिए होता है कि नामोच्चारण नामी के हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है।
छान्दोग्योपनिषद के भाष्य में आचार्य शंकर ने भी नाम शक्ति का उल्लेख किया है। इसी प्रकार भगवान के नाम का प्रभाव अनेक महापुरुषों ने अनुभव किया है। बाद की आचार्य परम्परा में आए हुए प्रायः सभी सम्प्रदाय के आचार्यों ने नाम महिमा का गुणगान किया है। उसी परम्परा में लक्ष्मणकिलाधीश आचार्य श्री युगलानन्य शरण जी महाराज की तपस्थली लक्ष्मण किला रसिकोपासना के आचार्य पीठ के रूप में स्थित है। स्वामी जी युगल प्रियाशरण जीवाराम जी महाराज के शिष्य थे। जिनका जन्म वर्ष 1818 में नालंदा के ईशरामपुर में हुआ था। स्वामी युगलानन्य शरण जी का रामानन्दीय वैष्णव सम्प्रदाय में विशिष्ट स्थान है। आपने भी रामनाम महिमापरक "श्री रामनाम प्रताप प्रकाश" नामक अद्भुत संग्रह ग्रन्थ लिखा है। आचार्य जी ने लगभग 92 ग्रंथों की रचना की है। भगवन्नाम महिमा परक यह अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की कुछ लोगों ने व्याख्या करके बहुबिध प्रकाशित एवं प्रसारित भी किया है। जयपुर से भी इस ग्रन्थ का प्रकाशन हिन्दी अनुवाद सहित किया गया है। परन्तु नाम संकीर्तन की श्रृंखला में तथा संस्कृत जगत में प्रतिष्ठित आचार्य मिथिला प्रसाद त्रिपाठी जी ने भी ग्रंथोक्त श्लोकों का हिन्दी अनुवाद 'लक्ष्मी टीका' के रूप प्रस्तुत किया है, जो "रामनाम प्रभाव" नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। टीकाकार की कीर्ति कौमुदी किसी से छिपी हुई नहीं है। आपने इस ग्रन्थ के प्रत्येक श्लोक में मनोगत एवं शास्त्रमत रहस्यों को उद्घाटित किया है।
इस ग्रन्थ में 11 प्रमोद उल्लिखित हैं जिनकी कुल श्लोक संख्या 1141 है। आचार्य युगलानन्य शरण जी महाराज ने अथक परिश्रम करके भगवत् प्रेरणा से वेदों से लेकर संग्रह श्लोक पर्यन्त रामनाम महिमा का प्रामाणिक प्रकाश किया है। इस ग्रन्थ के 11 प्रकाशों में पुराण, उपपुराण, संहिता ग्रंथ, स्मृतिवाक्य, रहस्यवाक्य, नाटकवाक्य, तन्त्रवाक्य, रामायणवाक्य और श्रुति वाक्यों का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए श्रीरामनाम की महिमा के प्रामाणिक सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं जो मानव समाज का अत्यन्त अहैतुक उपकार किया है।
भगवत्कृपा से त्रिपाठी जी ने 'लक्ष्मी टीका' लिखकर 'रामनाम प्रभाव' नामक इस ग्रन्थ के सम्पादन और प्रकाशन का दायित्व मुझे प्रदान कर अहैतुकी कृपा दृष्टि का सुयोग बनाया है। पश्चिमाम्नाय श्रीद्वारकाशारदापीठाधीश्वर श्री मज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री सदानन्द सरस्वतीजी महाराज के शुभाशंसनम् से इस ग्रंथ की प्रामाणिकता एवं सार्थकता सिद्ध होती है एतदर्थ आचार्य श्री के श्री चरणों में शत् शत् नमन्। इस पुस्तक के सम्पादन में आचार्य त्रिपाठी जी का मार्गदर्शन पदे-पदे मेरा सम्बल रहा है। साथ ही डॉ. राजदेव मिश्र ने अपने अभूतपूर्व लेखन एवं मुद्रण संशोधन से आद्योपान्त सहयोग प्रदान कर इस पुस्तक को साकाररूप प्रदान किया है, एतदर्थ उनके इस अमूल्य सहयोग हेतु प्रार्थना करके उनके प्रति धन्यवाद मात्र ज्ञापित करना उनके सहयोग के प्रति न्यूनता द्योतित होगी। इस पुस्तक के मुद्रण संशोधन में डॉ० कैलाशनाथ मिश्र जी (कानपुर) का अत्यन्त सहयोग प्राप्त हुआ है। एतदर्थ मिश्र जी धन्यवादार्ह हैं। साथ ही चिन्तन प्रकाशन के श्री रामसिंह जी भी धन्यवादार्ह हैं जिन्होंने बहुत ही सूझ-बूझ से इस पुस्तक का मुद्रण और प्रकाशन किया है।
मैं पाठकों, जिज्ञासुओं और विद्वानों से भी अनुरोध करता हूँ कि इस ग्रन्थ का अध्ययन अवश्य करें, इससे उन्हें जीवन में बहुत कुछ प्राप्त होगा। मेरी अभिलाषा है कि यह ग्रन्थ प्रत्येक परिवार में सुलभ और समादृत हो।
अन्त में प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान करने वालों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए यदि इस पुस्तक में कुछ अशुद्धियाँ रह गयी हो तो उनके प्रति कृपालु होने के लिए मैं पाठको, मनीषियों और विद्वानों से क्षमा याचना करता हूँ। अस्तु
इतिशम्
विनयावनत
डॉ० रामपाल शुक्ल