Main Hijra Main Laxmi ! Sthiti Aur Asmita Ka Sankat
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Main Hijra Main Laxmi ! Sthiti Aur Asmita Ka Sankat

ISBN: 9788198309419
Availability: 100
Special price:₹316.00
Old price:₹395.00
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Book Details
Book Author Babita
Language Hindi
Book Editions First
Binding Type Hardcover
Pages 96
Publishing Year 2025

प्रस्तावना

मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी!' आत्मकथा मूल रूप से मराठी आत्मकथा है। जिसका हिंदी अनुवाद डॉ. शशिकला राय और सुरेखा बनकर दोनों ने मिलकर किया है। यह आत्मकथा मराठी, गुजराती और अंग्रेजी में उपलब्ध है। बहरहाल इसको पढ़ने के बाद हमारे मन में हिजड़ों के प्रति होने वाली तिरस्कार की भावना दरकिनार हो जाती है। 'हिजड़ा' उर्दू शब्द है जो 'हिजर' अरबी शब्द से आया हुआ है। 'हिजर' से तात्पर्य है अपने बिरादरी छोड़ा हुआ या अपने समुदाय / बिरादरी से बाहर निकला हुआ। मतलब स्त्री-पुरुष के समाज से बाहर निकलकर स्वतंत्र समाज बना के रहने वाला। हालाँकि हिजड़ा होना प्राकृतिक है और शारीरिक विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो यह गुणसूत्रों के असंतुलन से आई एक विशिष्टता है। लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से इन गुणसूत्र की विशिष्टता को कभी सम्मान की नजर से नहीं देखा गया। इसे हीन दृष्टि से देखे जाने के तमाम सामाजिक, ऐतिहासिक उदाहरण भरे पड़े हैं। हिजड़ों का इतिहास बहुत पुराना है। रामायण, महाभारत सहित तमाम इतिहास ग्रंथ तथा पौराणिक कथाओं में हिजड़ों के बारे में बताया गया है। महाभारत में हिजड़ों का स्पष्ट उल्लेख है। जब अर्जुन को एक साल के अज्ञातवास में बृहन्नला के रूप में रहना पड़ा था। एक और स्थान पर महाभारत में शिखंडी का उल्लेख भी मिलता है। वह दरअसल अंबा थी। उसने भीष्म से बदला लेने के लिए तपस्या करके शिखंडी के रूप में पुरुष का जन्म लिया था। मुगल शासन काल में कई हिजड़ों ने राजनीतिक में साझेदारी की थी। इसका मतलब उस समय उन्हें सम्मान व आदर मिलता था। उस समय के कमोबेश मुसलमान भी बड़े अमीर हो चुके थे। इसी प्रकार रामायण में भी राम जब वनवास के लिए निकलते हैं, तब अयोध्या के नगर द्वार पर हिजड़े राह देखने के लिए रूक गये थे। वात्स्यायन के कामसूत्र में तृतीय प्रकृति कहकर हिजड़ों का उल्लेख किया गया। इन सबके अतिरिक्त हिजड़ों से जुड़ी पौराणिक एवं ऐतिहासिक कहानियाँ शामिल हैं। कहीं बुचरा माता या मुर्गे वाली देवी की कहानी प्रचलित है तो कहीं रावण की कथा प्रचलित है। दक्षिण भारत में आज भी हिजड़े अरावन को अपना मूल पुरुष मानते हैं और खुद को अरावनी कहते हैं। तमिलनाडु के अरावली मंदिर में हर साल अप्रैल-मई के महीने में 18 दिनों का धार्मिक उत्साह होता है। पूरे देश के हिजड़े यहाँ आते हैं। इस अवसर पर आखिरकार अरावन की मृत्यु होती है और अरावनी नृत्य करके चूड़ियाँ तोड़ कर विधवा बनकर शोक प्रकट करती हैं। हमारे समाज की मुख्यधारा में हमेशा से दो ही जेन्डर स्त्री और पुरुष प्रमुख रहे हैं, जो समाज को हमेशा से गति देता आया है लेकिन इन दोनों के अलावा भी समाज में एक जेन्डर और निवास करता है जिसे हम सब थर्ड जेन्डर के नाम से संबोधित करते हैं। जो न तो पुरुष है, न ही स्त्री है। वह न संबंध बना सकते हैं और न ही गर्भ धारण कर सकते हैं। समाज में इन्हें हिजड़ा, कोज्जा, किन्नर, नपुंसक आदि नामों से संबोधित किया जाता है। संविधान में इन्हें इंटरसेक्स, ट्रांससेक्सुअल और ट्रांसजेंडर के रूप में पहचाना गया है और इनकी पहचान को थर्ड जेन्डर में ट्रांसजेंडर श्रेणी में रखा गया है। थर्ड जेन्डर, थर्ड सेक्स का समानार्थी नहीं है बल्कि इसका मानना है कि जेन्डर का संदर्भ हमारे मस्तिष्क से है। यदि कोई बच्चा लड़की पैदा होती है और लड़के की तरह व्यवहार करती है तो वह है उसका यौन अभिविन्यास (सेक्सुअल ओरियंटेशन) कहा जाएगा। थर्ड जेन्डर एक तरह से न्यूट्रल है जो अन्य चैनलों के भीतर नहीं है। इसमें यौनिकता का समावेश संभव है। यौनिकता का आशय यहाँ यौन क्रिया और यौन संबंधों तक सीमित नहीं है बल्कि यौनिकता से अभिप्राय प्रवृतियों और व्यवहारों से है।

यौनिकता हमारी भावनात्मक यानी हम कौन व क्या हैं व समाज से हमारे रिश्ते से होती है। यह न सिर्फ यौनिक पहचान से जुड़ी हुई है बल्कि इसमें यौनिक मानदंड, व्यवहार, बर्ताव, चाहत, अनुभव, यौनिक ज्ञान और कल्पना भी शामिल होती है जो विषम लिंगी वह समलैंगिक संबंधों के अंतर्गत गढ़ी जाती है। आमतौर पर जेन्डर से यह निर्धारित होता है कि अपनी यौनिकता को किस तरह व्यक्त करते हैं। थर्ड जेन्डर के न्यूट्रल स्वभाव के कारण ही हिजड़ा समुदाय को थर्ड सेक्स या उभयलिंगी समाज के रूप में जाना जाता है। स्वयं को थर्ड जेन्डर के भीतर ट्रांसजेंडर कहलवाना पसंद करता है।

'मेरे शोध का विषय "मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी... में थर्ड जेन्डर के जीवन की स्थिति और अस्मिता का संकट" है। इस विषय को चुनने का मकसद यह था कि समाज में हमारी ही तरह जीवन जीने वाले मनुष्य हमारी ही तरह रहन-सहन खानपान में समानता रखने वाले यह मनुष्य मात्र एक लिंग विशेष के ना होने के कारण समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिए जाते हैं तथा अभिशप्त जीवन जीने के लिए क्यों मजबूर कर दिए जाते हैं? वर्षों से अपमान लज्जा और हाशिये की जिंदगी जीने वाले किन्नर या हिजड़ा समुदाय को विमर्श के केंद्र में लाना तथा उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन पर प्रकाश डालना तथा साथ ही साथ आम आदमी के अंदर उनके प्रति मोहब्बत, प्रेम व सम्मान की भावना जगाना ही मेरा मुख्य उद्देश्य था। मैंने अपने शिक्षकों व सहपाठियों से विभिन्न विमर्शों पर बातचीत के दौरान यह महसूस किया कि स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श आदि विमर्शों पर पर्याप्त शोध हो चुका है और शोध कार्य हो भी रहे हैं परंतु थर्ड जेन्डर पर बहुत ज्यादा शोध कार्य नहीं हुआ है और तब मैंने तय किया कि इस जेन्डर विमर्श पर शोध कार्य करना है। इसे साहित्य के विमर्श के केन्द्र में लाना है। मुझे यह लगता था शायद किन्नरों का नाच-गाकर पैसा कमाना ही एकमात्र पेशा है। परंतु यह भ्रम अगले ही दिन दूर हो गया जब मैं घर वापस लौट रही थी तब मैंने सिग्नल पर दो किन्नरों को भीख माँगते हुए देखा। तभी से मेरे मन में किन्नरों के प्रति सहानुभूति तो जगी ही और इनके जीवन को नजदीक से जानने की इच्छा और प्रबल हो गयी।

इस विषय पर काम करते हुए मैंने महसूस किया कि सभी हिजड़ों का जीवन नारकीय स्थिति में नहीं है। परंतु जो किन्नर अपने घर, परिवार से प्रेम, अपनत्व तथा सम्मान पाते हैं, वह हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर लेते हैं। मेरे शोध विषय का पहला अध्याय जेन्डर एवं थर्ड जेन्डर की अवधारणा और सामाजिक निर्मित तथा संवैधानिक स्थिति है। इसके अंतर्गत मैंने जेन्डर क्या है? जेन्डर भेदभाव के कारण क्या है? जेन्डर के संबंध में स्त्री-पुरुष की भूमिका क्या है? जेन्डर किस प्रकार सामाजिक संरचना का अभिन्न अंग है आदि प्रश्नों का हल जानने का प्रयास किया है। मैंने इसी अध्याय में थर्ड जेन्डर की अवधारणा को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। समाज में थर्ड जेन्डर की क्या स्थिति है, इसे हमारा समाज किस प्रकार से देखता है और किस प्रकार इनके साथ व्यवहार करता है और इसी अध्याय में हम थर्ड जेन्डर संबंधित संवैधानिक प्रावधानों तथा किन्नर समुदाय के लिए बन रहे नए नियम और कानून को जानने का प्रयास किया है। मेरा दूसरा अध्याय 'मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी' में थर्ड जेन्डर की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति है। इसमें मैंने थर्ड जेन्डर समुदाय की सामाजिक राजनीतिक, आर्थिक संघर्ष को दर्शाने का प्रयास किया है। भारतीय समाज में एक किन्नर को किस प्रकार मनुष्य होने के दर्जे से नीचे समझा जाता है, साथ ही साथ उसके साथ किस प्रकार का व्यहवार किया जाता है। यह समझने का प्रयास किया गया है। किन्नरों को किस प्रकार राजनीति में कितना आरक्षण मिलता है और उनकी स्थिति क्या रही है। यह हमने राजनीति की स्थिति में जानने का प्रयास किया है। आर्थिक दृष्टि से किन्नर कितने सक्षम हैं या नहीं, यह भी जानने का प्रयास किया है। किन्नर सिर्फ और सिर्फ आर्थिक से दृष्टि नाच गाने या भीख माँगने तक ही सीमित नहीं हैं। यहाँ तक कि किन्नर अपने शरीर को बेचने पर भी मजबूर हो जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से वह बेरोजगार होते हैं और साथ ही साथ अशिक्षित होने के कारण अपना व्यापार या व्यवसाय नहीं चला सकते। उनके लिए यह सभी समस्याएँ होती हैं जिनका सामना उन्हें करना पड़ता है। जिस कारण वे सेक्स वर्क जैसे कार्यों में लिप्त हो जाते हैं जिससे उनका जीवन नारकीय बन जाता है।

मेरा तीसरा अध्याय 'मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी' में थर्ड जेन्डर के समकालीन परिप्रेक्ष्य है। इस अध्याय में हमने यह देखने का प्रयास किया है कि समाज में थर्ड जेन्डर की क्या स्थिति है? किस प्रकार लक्ष्मी बने राजू को अपने अस्तित्व, रोजगार और पेशे समेत साथ ही साथ अपने सामाजिक कर्तव्यों के साथ हम देखते हैं। एक हिजड़ा मनुष्य होने के सारे दायित्व पूरे कर सकता है। यदि वह शिक्षित है और साथ ही साथ रोजगार के अवसर होने पर वह सभी के लिए उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। लक्ष्मी जिसका बचपन का राजू नाम है, वह किस प्रकार से अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एक अच्छी तालीम लेती है और किस प्रकार से अपने सभी सपनों को पूरा करके अपने बेटे होने के फर्ज और साथ ही साथ अन्य परिजनों के दायित्वों को भी निभाती है और सभी किन्नरों के लिए एक उदाहरण बनती है।




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